________________ मोही प्रमत्त बनते, भयभीत होते, खोतं स्वकीय पद को दिन रन रोते / योगी करे न भय को वन अप्रमत्त, वे मस्त व्यस्त निज में नित दत्तचित्त : 166 // मोही ममत्व रखता न विराग होता, विद्या उमे न मिलती दिन रैन सोता। कैमे मिले मुख उमे जव आलसी है, कैमे बने "मदय" हिमक नाममी है // 167 // भाई मदेव यदि जागत नू रहेगा, तेरा प्रबोध बढ़ता बढ़ता बढ़ेगा / वे धन्य हैं. मान जाग्रत जी रहे हैं, जो मो रहे अधम हैं विप पी रहे हैं // 16 // है देव, भाल, चलता, उठना, उठाताशास्त्रादि वस्तु गाना, ना को गुलाता / है त्यागता मल, नगर को बचाता, योगी अहिनक दयाल नरी सदाना // 169 / / / 4 /