________________ 14 शिक्षा सूत्र पाते नही अविनयी सुख सम्पदाये, पा ज्ञान गौरव सुखी विनयी सदा ये। जानो यही अविनयी-विनयी समीक्षा, ज्ञानी बनो सहज पाकर उच्च शिक्षा // 170 // मिथ्याभिमान करना, मनक्रोध लाना, पाना प्रमाद, तनमे कुछ रोग आना। पालस्यकानुभव, ये जब पच होते, शिक्षा मिले न, हम बालक सर्व गते // 171 // आलस्य हास्य मनरजन त्याग देना, होना मुशील, मन-इन्द्रिय जीत लेना। क्रोधी कभी न बनना, बनना न दोषी, ना भूलना विषय में न अमत्य--पोपी / / 172 / / भाई कदापि वनना न रहम्य भदी, ऐमा सदैव कहा गुरु आत्मवेदी / प्रा जाय आठ गुण जीवन मे किमी के, विद्या निवास करती मुख में उमी के // 173 / / सिद्धान्त के मनन मे मन-हाथ आता, विज्ञान भानु उगता, तमको मिटाता / जो धर्म निष्ठ बनता, पर को बनाता, सद्बोध रूप सर में डुबकी लगाता // 174 // ससार को प्रिय लगे प्रिय बोल बोलो, सध्यान में तप तपो दृग पूर्ण खोलो / सिद्धान्त को गुरुकुली बन के पढ़ोगे, सद्यः सभी श्रत विशारद जो बनोगे // 17 // [ 5 ]