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( १६ ) चौबीस तीर्थंकर का स्तवन। .
ऋषभ अजित सम्भव श्राभिनंदन, निरंजन निराकार, सुमति पदमसुपार्श्व चन्दा प्रभु,मेट्या विषय विकार श्रीजिनमुझ ने पार उतारो प्रभु हूं चाकर चरणारो!!श्रीजिन०॥ सुविधिशीतल श्रेयासं वास पूज्य मुक्ति तणा दातारो विमल अनन्त धर्मनाथ शान्ति जिन साताकारी संसारो॥ श्री जिन०॥ कुंथु अरनाथ मल्ली मुनिसुव्रत पाम्या अवजल पारो, नमीए नेमनाथ पार्श्व महावीरजी शासन ना सिरदारो ॥ श्री जिन०॥ग्यारह गणधर बीस विरहमान सर्व साधु भणगारो अनंती चौबीस ने नित्य २ बन्दु करगया खेवा पारो ॥ श्री जिन० ॥ अधम उधारण, बिरद सुणी प्रभु शरण लियो चरणारो.