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अनानुपूर्वी ।
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| ३|४| (१२) मनुष्य मात्र को |५२ १३ | ४
४३ चाहिये कि न्याय, नीति ५ २ १/४ | ३|| १३ | २४ सत्य के साथ तथा पांच ५१ ३ | ४ | २ | प्रकार के विरोध टाल कर
। ५ २ ३४|१ ५१४ २ ३ और द्रव्य, क्षेत्र, काल J५ | १ | ४ | ३ | २ | भाव देख कर द्रव्य को उपार्जन करे, न कि झूठ कपट दंगा धोखा तथा चालाकी के साथ करे। कहा है:
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