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नंद निराश्रय निश्चल ॥निरबिकार निर्वाणी निरांतक निरलेप निरामय ।। निराकार वरणानी ॥ श्री ॥ ६ ॥ एहवौ ज्ञान समाधि संयुक्तो ॥ श्री नेमी सर स्वामी ।। पूरण कृपा बिनचंद प्रभु.की अबतै ओलखपामी ॥७॥
श्री नेमी ॥ २२ ॥इति॥ . , ढाल. जीबरे तूं सील तणौ कर संग ॥
एदेशी. .. अस्व सैननृप कुल तिलोरे । वामा देवी
नौ नंद ॥ चिंतामणि चित में बसे ॥ तौदुर टेलै दुष द्वंदु ॥ १॥ जीबरै तु पार्श्व जिनै सरबँद ॥ जड चेतन मिश्रतपणैरे ॥ करम सुभा सुमथाय ॥ तै विभ्रम जग कल् अनारे आतम अनुभव न्याय ॥२॥जी॥ बैमी भय माने जथारै ।। सुनै घर वे ताल||