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- समुद्र बिजै मुत श्री नेमासर ॥ जादब कुल को टीको ।। रतन कुँख धारनी सेवा ॥ देवी जैहना नंद नाकौ ॥१॥ . . . आक्रडी ' • सुन पुकार पसु की करुना कर जाण जगत सुखफीको ।। नव भव नेह तज्यो जोबन में ।। उग्रसैन नृप धीको ॥ २ ॥श्री।। सहस्र पुरुष सो सँजम लोधौ ।। प्रभुजी पर उपगारी धन धन नेम राजुल की जोड़ी। महाबाल ब्रह्मचारी ।। श्री ॥ ३ ॥बोधानंद सरूपानंद में। चित्त एकाग्र लगायो। आतम अनुभव दशा अत्यासी ॥ सुकल ध्यान जिन ध्यायौ ॥श्री ॥ ४॥ पूरणानंद केवलि प्रगटे परमानंद पदपायौ ॥ अष्ट कग्म छेदी अल बेसर सहजानंद समायौ॥ श्री॥५॥ नित्या।