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ક્ समुझीने | तीजी उपादेव उलखाने || सम कित निरमल कीजेरे ॥ सुज्ञानी• ॥ ३ ॥ जीब अजीव बंध ऐतीनं ॥ गेय जयारथ जानौ ॥ पुन्य पाप आसव पर हरिये हेय पदारथमानोरे || सुवानो ०||४|| सँवर मोष नि जेरा ये निज गुण ॥ उपादेय आदरिये । कारन कारज समझ भली विधि || भिनभिन निरणो करियेरे ॥ ५ ॥ सुज्ञानी० || कारन ज्ञान सरूपी जीवको || कारज किया पसारो दानुंकी साखी मुत्रअनुभव आयोपौज जिहारोरे ॥ ६ ॥ सुज्ञानी॥ तू सो प्रभू प्रभू सो तू है देत कलपना मेटौ । सव चेतन आनन्द बिनै चंद परमातम प्रभू भेटोरे।। ॥सु०॥२१॥इति ॥
ढाल !! नगरी खूप बणी छैजो | देशी श्री जिन मोहन नारी जीवनप्राणहमारीछै ॥