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मायकै ।। तस सुत त्रिभुवन तिलक हुँ । बंदत बिनैचँद सीस निबाय के ॥ श्री मुनि सुब्रत साहिबा०॥७॥ २० ॥इति॥
डाल ॥ मुणियोरे बाबा कुटिल मँजारी तोता लेगई। ..
एदेशी ।। बिजैसैन नृप बिप्राराणी । नेमी नाथ जिन जायौ। चौसठ इन्द्र कियो मिल उत्सब सुरनर आनंद पायोरे॥ १॥ सुज्ञानी जाबा भजले किन इक बिसौभ० ॥
आँकडी भजन किया भवभवना दुकृत ॥ दुख दो भाग मिटजावै ॥ काम क्रोध मद मच्छर त्रिसना ॥ दुरमत निकट न ओवैरै ॥२॥
सुज्ञानी जीवा०॥ - जीवादिक नव तत्व हीयै धर।। गेय हेय