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२॥ पूरन अशुभकर्शव्यता । ते. हमना प्रभू तुम बिचारकै ॥ अधम उधारण बिरध छै।। सरल आयो अब कीजियै सार के।। श्री मुनि सुबत स बा ॥शा किंचित पुश्य प्रभावथा इणव आलखियोजिन धर्म के ।। नृवृत नरक निगादथी एहवी अनुग्रह करो पर ब्रह्म कै॥ ४ ॥ श्री ॥ साधूपणो नहिं सँग्रहा श्रावक बृत न कीया अमोकार के ॥ आदरया तौल अराधिया । तेहथी रुलाया हं अनंत संसार कै ॥ ५ ॥ श्री मुनि सुब्रत साहिबा । अब सम कित बत आदरयो । प आराधक उतरूपारके ।। जनम जीत
लौ हुवै ॥ इणपर बीनवू बार हजार ॥६॥श्री मुनि सुनत साहिबा ।। सुमअभिपतुम पिताधिन धन श्रीपदयावतो