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उठ्यानृप हारी तब उपदेश दियो श्रीमुख ॥ माह इसाटारी ।। म० ॥ ८॥ महा असार उदारक देही । पुतली इब प्यारी ॥ संगकियां पटकें भव दुख में नारि नरक वारी ॥म०९॥ नृप हूँ प्रति बोधे मुनि होय ।। सिधगत सँभारी ।। बिनचंद चाहत भव भव में । भक्ति प्रक्षुथारी ।। १० । म० ॥ १९ ।।इति।।
ढाल चेतरे चेतर मानवी । एदेशी ।। श्रीमुनि सुव्रत सायका दीन दयाल देवांतरणा देवके ।। तारण तरण प्रभू तो भणी उजाल चित सुमरूं । नितमे कै।। १ ।। श्री भूनि सूबल साहिबा ॥ हूँ - अपराधी अनादि को ।। जना र गुना किया भरपूर के। लूटिया प्राण छकायबा सेबिया पाप अठार करूरकै ॥श्री मुनि सुबत साहिबा .