SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ૮ ० चरित्र तुम्हारो प्रभुजी | बेड धरयो नारी ॥ मि० सपरणन काज जान राज आभूपति छैः मारी | मिहला पुरी घेरि चौतरफा सैना बिस्ताशि|| ||३| राजा कुँस प्रकासी तुमपे । बीतक बिधसारी ॥ छैहूँनूप जान करी तो पर नन || आया अहंकारी || म० ॥ ४ ॥ श्री सुख धीरप दधि पिताने ॥ राषै हुशियारी ॥ पुतली एक 'रची निज आकत ॥ थोथी ढकवारी ॥ म० ॥ ५ ॥ L भोजन सर्व भरसा पुतली ॥ श्रीजिण सिण गारी ॥ भूपति छहूँ बुलाया मंदिर वीच वहू नपारी । म० ।। ६ ।। पुतली देख छहूँ माह्या अवसर बीचारी ॥ ढाक उघार नौ पुतली को | भभक्यो अनवारी || म - दुस्सह दुर्गन्ध सही नहीं जाने || '
SR No.010234
Book TitleJain Gazal Gulchaman Bahar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy