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चरित्र तुम्हारो प्रभुजी | बेड धरयो नारी ॥ मि० सपरणन काज जान राज आभूपति छैः मारी | मिहला पुरी घेरि चौतरफा सैना बिस्ताशि|| ||३| राजा कुँस प्रकासी तुमपे । बीतक बिधसारी ॥ छैहूँनूप जान करी तो पर नन || आया अहंकारी || म० ॥ ४ ॥ श्री सुख धीरप दधि पिताने ॥ राषै हुशियारी ॥ पुतली एक 'रची निज आकत ॥ थोथी ढकवारी ॥ म० ॥
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भोजन सर्व भरसा पुतली ॥ श्रीजिण सिण गारी ॥ भूपति छहूँ बुलाया मंदिर वीच वहू नपारी । म० ।। ६ ।। पुतली देख छहूँ माह्या अवसर बीचारी ॥ ढाक उघार नौ पुतली को | भभक्यो अनवारी || म - दुस्सह दुर्गन्ध सही नहीं जाने ||
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