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मोहनी करम खपायरे ॥ १ ॥ जापा०॥
. . ऑकडी॥ : ,' मुषम साधारण पणौ ॥ परतेक बनास पती मायरे॥जीवा०॥ छैदन भेदन तैसही।। मर मर ऊपज्यौ तिण कायरे जीवा ॥२॥ काल अनंत तिहागम्यौ ॥ तेहना दुख आगमथी सँभालेरे ॥ जीबा० ॥ पृथ्वी अप्प तेउ वायुमें ॥ रह्यो. असण्या २ तो कालरे ।। जीवा० ॥३॥ एकेन्द्रा रौँ बैद्रीथयौ ॥ पुन्याइअनती बृधरे ।। जोवा० ॥ सनीपचेंद्री लग पुनबंध्या ।। भनँता अता प्रसिधरे जीवा। ॥४॥ देव नरक तिरजच में ॥ अथवा माणस भवनीचरें।जीवा।। दीन षणे दुप भोगव्या। इणपर चारों गति बोचरे ॥ जीवा ॥ ५ ॥ अबकै उत्तम कुल मिल्यो । मेव्या उत्तम