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गुरू साधुः ॥जीवा॥ सुण जिन बचन समेह सू ॥ समकित बन आराधरे ॥ जीवा ॥६॥ पृथ्वी पति कीरति भानु को ॥ सामाराणी को कुमाररे ॥ जीवा ॥ बिनचूँद कहेते प्रभूः। सिर सेहरौ हिबडारी हाररे । जीवा ॥१३॥
ढाल बिगा पधारे महलथी॥
एदेशी ।। अनॅत जिनेसर नित नमो ।। अक्षुत जोत अलेषमा कहिये ना देखिय जाके रूप न रेख ॥ १॥ अनंत ॥ सुखमा मुख्यम प्रभू चिदानंद चिद्रूप ॥ पवन सबद आकासथी। मुख्यम ज्ञान सरूपाशअनंत।। सकल पदारथ चिंतवू । जेजे सुक्षम जोय। तिणथी तु सुक्षम महा ॥ तो सम अबर न जय ॥३॥ अनंत ।। कवि पडित कह कह के। आलम अर्थ विचार !! तो पिण तुम