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तदपी तू अनुकूल हूवैतेो ॥ छिनमें छूट जाय
केरा ॥ ४ ॥ प्रणसू० ॥ शकस भूत पिसाच
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डाकिनी ॥ संकनी भय नावें नेरौ ॥ दुष्ट मुष्ट छल छिद्र न लागे ॥ प्रभु तुम नाम भज्यां गहरौ || प्रणय ॥ ५ ॥ विस्फोटक कुष्टा दिक संकट | रोग असाध्य मिटै देहरौ ।। विष प्याला अमृत होय प्रगमें जो बिस बास जिनँद करौ ॥ ६ ॥ प्रणमु० ॥ मात जया वसु नृप के नंदन ॥ तत्व जथारथ बुध प्रेरौ
कर जोरि बिनैचंद बिनबे ॥ बेग मिटै भुश भव फेरौ |७| प्रणमु बास पूज्य जिन नायक सदां सहायक तुम मेरौ ॥ १२ ॥ इति ॥
ढाल अहो शिवपुर नगर सुहावणौ । एदेश || विमल जिणेसर सेबिये ॥ थांरी बुध निर्मल जायरे ॥ जीवा विषय विकार बिसार नै ।। तूं