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मुकत्त पंथ-पग भररे ॥६॥श्री।। तूं अधिकार विचार आतम गुन । भ्रम जंजाल मपररे॥ पुद्गल चाय मिटाय बिनचंद ॥ तुं जिन तैन अबररे ।। ७ ।। श्री ।।इति।।११ ॥
ढाल फूलसी देह पलक में पल ॥ एदेशी ॥ प्रण वास पूज्य जिन नायक।। सदां संहायक तूं मेरो ।। टेर ॥ विषमी बाट घाट भयथानक ॥ परमासय सरनो तेरो ।। खल दल प्रबल दुष्ट अति दारुण चौतरफ दियै धेरी ॥ तौ पिण कृपा तुम्हारी प्रभुजी ।। अरियनभी प्रगटै रौ । २ । प्रणमु० । बिकट पहार उजार बिचालै। बोर कुपात्र करै हेरो । तिण बिरियां करिये तो मुलरण ॥ कोई न छीन सकै डेरौ ॥३॥ मणमु ॥ राजा पात साह कोइ कोप अति तक करै छेरौ