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(६२ ) त्तागमे अणंत्तरागमे परंपरागमे तित्थगराणं अस्थस्स अत्तागमे गणदराणं सुत्तस्स अत्तागमे अस्थस्स अणंतरागमे गणहर सीस्ताणं सत्तस्स अणंत्तरागमे अत्थस्स परंपरागमे तेण परं सुत्तस्सावि अत्यस्सा।व नोअत्तागमे नोअणंतरागमे परंपरागमे सेत्तं लोगुत्तरिय सेत्तं आगमे सेत्तं नाण गुणप्पमाणे ॥
भाषार्थः-अथवा आगम तीन प्रकारसे और भी कथन किया गया है जैसे कि आत्मागम १ अनंतरागम २ परंपरागम ३। किन्तु तीर्थंकर देवको अर्थ करके आत्मागम है और गणधरों को सूत्र करके आत्मागम है अपितु अर्थ करके अनंतरागम है २ ॥ परंतु गणधरके शिष्योंको सूत्र अनंतरागम है अर्थपरंपरागम है उसके पश्चात् सूत्रागम भी अर्थागम भी नही है आमागम नहीं है अनंतरागम केवल परंपरागम ही है। यही लोगोस्तर आगमके भेद है । इसका ही नाम ज्ञान गुण प्रमाण है ॥
___ अथ दर्शन गुण प्रमाणका स्वरूप लिखता हूं।