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________________ (६३) मूल ॥ सेकित्तं दसण गुणप्पमाणे २ चउविहे पं, तं. चक्खु देसण गुणप्पमाणे अचक्खु दसण गुणप्पमाणे नहि देसण गुणप्पमाणे केवल दसण गुणप्पमाणे ॥ __ भाषार्थः-(प्रश्नः) दर्शन गुण प्रमाण किस प्रकारसे है ! (उत्तर) दर्शन गुण प्रमाण चतुर्विधसे प्रतिपादन किया गया है जैसेकि चक्षुः दर्शन गुण प्रमाण १ अचक्षुः दर्शन गुण प्रमाण २ अवधि दर्शन गुण प्रमाण ३ केवळ दर्शन गुण प्रमाण ४ ॥ अव चार ही दर्शनोंके लक्षण वा साधनताको लिखते हैं ।। __मल ॥ चक्खुदंसणं चक्खुदंसणिस्स घमपममाईसु अचक्खुदंसणं अचक्खुदंसणिस्स पायनावे जहिदसणं जहिदंसणिस्स सबरूविवेचन पुण सव्वपजवेसु केवल दसणं केवल दंसणिस्स सब दवेहिं सब पजवेहिंसेतं दंसणगुणप्पमाणे॥ ___ भाषार्थः-दर्शनावी कर्मके क्षयोपशम होनेसे जीवको चक्षु दर्शन घटपटादि पदार्थों में होता है, अर्थात् जब आत्मा
SR No.010234
Book TitleJain Gazal Gulchaman Bahar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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