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________________ (४३) उसको भी विनीतता से पूछने से उत्तर दे सकता हूँ. __अब शास्त्रीजी के शब्दार्थ कोश ज्ञान की मीमांसा की जाती है, मै सुनता हूँ कि शास्त्रीजी साहित्य के बड़े नामी विद्वान है किन्तु यह बात इस 'अलिविलासी' को देखकर सदिग्ध हो जाती है, क्योंकि शास्त्रीजीने इस 'अलिविलासी' में कई श्लोको में जहा जैनो का खण्डन हो रहा है उसमें जैनके स्थान पर बौद्धसूचक शब्द रक्खा है, याने कौन शब्द बौद्धका वाचक और कौन शब्द जैनका वाचक है यह चात शास्त्रीजी से अपरिचित है, देखिये 'इत्थं तथागतपथागतवेदनिन्दासर्वेश्वरादरविरोधवचो निशम्य ॥ ३५॥ तथागतपथागताहितकथा वितीर्णप्रथा ॥१०३ ।। चतुर्थशतक. ऐसे बहुत से श्लोक में अर्हन् का पर्याय तथागत को रक्खा गया है, पाठक ! आपही कहिये की इस वृद्धावस्थामें भी शास्त्रीजी को कोश कण्ठस्थ करने की आवश्यकता है या नहीं ? शास्त्रीजी महाशय ! तथागत नाम अर्हन् (जैनधर्मप्रकाशक ) का नहीं है किन्तु वह नाम आपके बुद्धावतार, युद्धदेव को बतलाता है, परन्तु अईन् का नाम तो यह है कि अर्हन् जिनः पारगतस्विकालवित्
SR No.010234
Book TitleJain Gazal Gulchaman Bahar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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