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________________ ( ४२ ) महाशय ! जैसे एक कुम्भारने अपने हस्त, दण्डका प्रयोग से चक को चलाया, फिर वह कुम्भार अपना हस्त, दण्डका प्रयोग नहीं करता है तब भी वह चक्र बहुत समय तक चला करता है अर्थात् वेगसे यह चक्र चलता है वैसेही कर्म (पुण्यपाप) रूप कुलाल से यह आत्म चक्र घूमाया जाता है, जब वह कर्म कुलालका समूल नाश हो गया, तब भी पूर्व के वेगसे वह मुक्तजीव उपरही जाता है. दूसरा प्रकार यह है कि जीव में हमेशा ऊपर जानेकी ही शक्ति नियत है, जड़में हमेशा अधोगमन की शक्ति नियत है, परन्तु जब तक जीव और पुद्गल किसी के अधीन रहते हैं तब तक उसकी सब तरफ गति होती है, और जब जीव, पुद्गल असङ्ग, स्वतन्त्र होते है तब उसकी गति अपने नियमानुसार ऊपर और नीचेही होती है, तीसरा प्रकार तो खेतिहर भी जानता है. जैसे एरण्ड की सिङ्गका बन्धच्छेद करने से एरण्डकी ऊर्ध्वगति होती है वैसेही जीव के कर्मबन्धका छेद होने से उसकी उच्चगति होती है, और चौथा प्रकार तो स्पष्ट ही है कि जैसे तुम्बको जब पङ्कलगता है तब जल के नीचे जाता है, और जब पक्क नष्ट होता है तब वह तुम्ब उपर चला आता है, उसी तरह कर्मपङ्क, नष्ट होने से वह जीवमें उच्चगमन का परिणाम होता है और वह ऊंचे लोकान्त तक जाता है, इसी से ही शास्त्रीजी समजे होंगे की मुक्तजीव क्यों जाता है यदि और भी कोई शङ्का शास्त्रीजी की होवे तो
SR No.010234
Book TitleJain Gazal Gulchaman Bahar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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