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________________ (३८) चूहा में ही मालूम होता है ? ब्राह्मण तो सर्वव्यापक है किन्तु ब्राह्मण का धर्म तो अमूक गल्ली में ही मिल सकते है. ऐसी ऐसी ब्रामणपुच्छ समान बातों को कहनेवाले बड़े प्राऽज्ञ समझे जाते हैं, और भी आत्मा व्यापक मानने में बडी २ आफत का सामना करना पड़ता है, जैसे यदि कोई शास्त्रीजी बावा को पूछे की जो आत्मा व्यापक है तो वह अमूक अमूक स्थल में ही क्यों भोगादि करता है , सर्वत्र अपना भोगादि क्यों नहीं करता है ?, तब तो शास्त्रीजी कापते कांपते कहेंगे की यह बात तो उपाधि भेदसे मालूम होती है, वास्तव में आत्मा सर्वत्र है. फिर कोई शास्त्रीजी से पूछे की क्या उपाधि से जो भेद मालूम पड़ता है वह सच्चा है की झूठा', यदि शास्त्रिजी कहै कि झूठा तब तो वे सारे संसार के व्यवहारके, नाशक भये क्योंकि आत्मा पुरुष नहीं है, आत्मा स्त्री नहीं है, आत्मा क्लीब नहीं है आत्मा ब्राह्मण नहीं है, आत्मा शूद्र नहीं है, आत्मा माता नहीं है ऐसे प्रकार से जो जो जगत् में व्यवहार चले आते हैं, वे सब का कारण फक्त उपाधि ही है. यानं अपनी २ कर्मस्थिति ( उपाधि ) भिन्न होने से समान स्वरूप आत्मा भी भिन्न प्रकार से व्यवहृत होता है, यदि यह सब व्यवहार उपाधि अन्य होनेसे जूठा माना जाय तो जगत ही नहीं चल सकता, इस उपाधि जन्य व्यवहार में भी प्रामाण्य रहा हुवा है. इसलिये
SR No.010234
Book TitleJain Gazal Gulchaman Bahar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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