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________________ (३९) शास्त्रिजी सर्वज्ञ होने पर भी यह कभी नहीं कहसकते है कि उपाधि नन्य व्यवहार असत्य, मिथ्या है, यदि शास्त्रिजी कहें की यह सब भ्रान्त है जैसे स्फटिक निर्मल होने पर भी यदि कोई लाल, काला पदार्थ उसके पास रक्खा जाय कि तुरन्त उसका रंग बदलके लाल, काला, हो जायगा, इसलिये स्फटिक का मूल श्वेतवर्ण तो सत्य है और दूसरे पार्श्वस्य पदार्थ से भये हुये स्फटिक यर्ण प्रान्त है, तो ___ यह भी बाबाजी कि झूठी बात है, क्योंकि आप महामहोपाध्याय तो हुए है परन्तु अफसोस है कि आपने आज काल की नयी साइन्स विद्या कुछ भी न देखी, यदि आप पूर्वोक्त बात कोई साइन्स विद्या विशारदको कहते तो वे जरूर हॅसता और आपकी महामहोपाध्यायता पर मुग्ध हो जाता, प्यारे महाशय ! एक पदार्थ से जो दूसरे पदार्थ में परिणाम होता है सो कभी मिथ्या, भ्रान्त नहीं है, जैसे कोई रंगसाज ने लाल रग से एक श्वेत कपडा को लाल बनाया, तो क्या उस कपडे का लाल रंग झूठा कहा जावेगा ?, और श्वेतरग सच्चा कहा जावेगा ?, यह कभी होही नहीं सकता, क्योंकि दोनों रग सच्चे है. यदि दोनों में से एक भी झूठा होता तो वजाज से और रंगरेज से कोई वस्त्र ही नहीं खरीदता, और रंग की दुकान पर जो लाखों रुपये कि आमदनी है सो भी नहीं होती, इसलिये वल रंग की तरह स्फटिक का रंग भी जो भिन्न भिन्न पार्श्ववर्ति प
SR No.010234
Book TitleJain Gazal Gulchaman Bahar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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