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________________ (३३ ) क्रम, अक्रम से एक भी क्रिया नहीं कर सकती है तब पदार्थ की श्रेणी में तार्किक लोग कैसे मान सकते हैं ?. पाठक ! अब तक शास्त्रीजी का एक भी पक्ष नहीं ठहर सका है, तब भी सब से अधिक अनुकम्प्य ब्राह्मण वर्गस्थ शास्त्रीजी को एक बात मै सिखलाता हूं, कि जिससे शीघ्र ही शास्त्रीजी विजयी बनें. शास्त्रीजी महाशय ! अब अपने यशकी रक्षा के लिये जो आपने धर्मान्धता का वेष पहिना है उसको उतारिये और निष्पक्षपातिका ड्रेसको अपने दिल पर लगा __ लीजिये याने आप आकाश से लेकर परमाणु तक छोटा मोटा सव पदार्थ को नित्यानित्य मानें तो आपके यह मत में बृहस्पति भी दूषण नहीं डाल सकता है. जैसे उदाहरण में आप आत्मा को ही समझिये की आत्मा जब गमन क्रिया में प्रवृत्त होता है तब उस क्रिया के पूर्व आत्मा की शयन क्रिया में जो प्रवृत्ति थी वह नष्ट होती है, अर्थात् सब पदार्थ क्रिया करते समय अपने पूर्व का आ कार ( पर्याय ) को त्यजते हैं, और उत्तर के आकार को स्वीकारते _ हैं. जैसे एक वस्त्र पर काला रङ्ग है. उसको धोने से वह चला जाता - है, और वस्त्र भी लाल हो सकता है, उससे वस्त्र नष्ट होता है यह में बात नहीं है, वैसेही यह आत्मा भी अपना पूर्व रङ्ग को छोड़ता है, - उत्तर रङ्ग को खीकारता है इससे वह परिणामी है किन्तु नष्ट नहीं - होता है. और भी आज कल के नये विज्ञान से यह साफ सिद्ध
SR No.010234
Book TitleJain Gazal Gulchaman Bahar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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