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________________ (३४) होती है की मूल द्रव्य, वह तो नित्य है. परंतु वह मूल द्रव्य में समय समय में परिणाम हुवा ही करता है. किन्तु वह मूल द्रव्य नष्ट नहीं होता है और वास्तवमें वस्तुका सत्य स्वरूप तो यह ही है की जिसमें उत्पाद, व्यय, धौव्य यह तीन रहता है वह ही पदार्थ है और इससे अन्य सब ब्राह्मणपुच्छ की तरह है. पाठकगण ! खूब सोच के पढे, इस समय मे पूर्वोक्त उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य का स्वरूप दिखलाता हूँ. जो पदार्थ उत्पन्न होता है, बदलता भी है, और स्थिर रहता है वह ही पदार्थ है, यह बात अनुभव से सिद्ध भी है, परन्तु शोक है की शास्त्रीजी की वृद्धावस्था होने से उनको पक्ष पातका चश्मा आगया है. देखिये- आपका ही ( शास्त्रीजी का) उदाहरण- आपका नाम गगाधर है जो बहुत छोटी अवस्था में रखा गया था, जब वह नाम रक्खा गया तब आपकी शरीराकृति और ही थी और अब आपका शरीरसौन्दर्य उस आकृति से विल. कुंठ विपरीत है. जिस मारुति की विद्यमानता में आपका नाम गमावर रखा गया था वह आकृति न होने पर भी इस समय सर लोग आपको गंगाधर ही क्यों कहते है ?, जरा बुद्धि लगाकर विचा रने में स्पष्ट सिद्ध होता है की जो पूर्वका गंगाधर था, वह काला परिणाम से विकृत होकर इस समय एक नया ही गंगाधर बना है " नो नया बना है, जो विकृत हुआ था, यह दोनों में गंगाध
SR No.010234
Book TitleJain Gazal Gulchaman Bahar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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