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________________ (२०) न द्वेपी हो न रागी हो, सदानन्द वीतरागी हो। वह सब विषयोंका त्यागी हो, जो ईधर हो तो ऐसा हो ||टेक॥ न खुद घट २में जाता हो, मगर घट २ का ज्ञाता है। वह सत् उपदेश दाता हो, जो ईश्वर हो तो ऐसा हो ॥ न करता हो न हरता हो, नहीं अवतार घरता हो । न मारता हो न मरता हो, जो ईश्वर हो तो ऐमा हो । ज्ञानके नरसे पुरनर हो, जिसका नही सानी । सरासर नूर नृरानी, जो ईश्वर हो तो ऐसा हो ।। न क्रोधी हो न कामी हो, न दुश्मन हो न होमी हो । वह सारे जग का स्वामी हो, जो ईश्वर हो तो ऐना हो । वह ज़ाते पाक हो, दुनियाके झगडोंसे मुर्रा हो । आलिमुलगैच हो वेऐव, ईश्वर हो तो ऐसा हो ॥ दयामय हो शातिरस हो, परम वैराग्यमुद्रा हो । न जाबिर हो न काहिर हो, जो ईश्वर हो तो ऐमा हो॥ १ प्रकाश । २ बराबरका । ३ सहायक । ४ रहित । ५ सर्वज्ञ, गे पीछेकी छिपी हुई बातोंको जाननेवाला ६ । जुल्म करनेवाला, ।। ७ क्रोधी दुष्ट, अन्यायी।
SR No.010234
Book TitleJain Gazal Gulchaman Bahar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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