SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 104
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१८) __ समय समयपर उनकी शकल बदलती रहती है । न कोई चीन नाश होती और न कोई नवीन पैदा होती है। एक चीजकी हालतका विलकुल बदल जाना दूसरी चीजको पैदा करता है और उस बदलनेवाली चीजका नाश होना कहलाता है, परन्तु उम चीजका गुण चाहे उसकी कैसी ही हालन हो जाय कभी नहीं बदलता वह सब सदा ज्योंका त्यों रहता है, यह द्रव्यका लक्षण है और इसी लक्षणले धारी जीव, अजीवी, दो द्रव्य अनादि कालसे इस संसारमे पाये जाते हैं । जीव अनीव ( जड ) से मिला हुआ है और जिस तरह शराब वगैरह जड चीजोंके पीनसे स्वयं नशा हो जाता है अथवा ताकत देनेवाली चीजके खानेसे शरीरमें ताकत आती है, अगरचे शराब और तावत देनेवाली चीनोंकी यह इच्छा नही होती और न उनको इस बातका ज्ञान ही होता है, इसी तरह जीव जड (पुद्गल) से मिला हुआ अपने मनके शुभ अशुभ विचारों जवानसे निकले हुये कडवे मीठे शब्दोंसे और शरीरसे किए हुए या कराये हुये अच्छे बुरे कामोंकी वजहसे पुदलरूप कर्मोंको अपनी ओर खींचता है और कपायानुसार उनको उसी प्रकार परिणमाता है जैसे आगसे तपा हुवा लोहेका गोला उसपर ए पानीको अपनी तरफ खींचकर अपनेमें मिला लेता है। __ और कर्मरूप पुद्गलके इस एकमेक सम्बन्ध होनेको, बंध
SR No.010234
Book TitleJain Gazal Gulchaman Bahar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy