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________________ ( १७ ) है । अतः ईश्वरने ईश्वरको मारा। कोई किसीका शत्रु मित्र न रहा । चौर जत्र चोरी करता है, उसमे भी ईश्वर है, व्चमियारी ज व्यभिचार करता है उसमे भी ईश्वर है, यदि ऐसा ही है और एक ईश्वर सब जगह' है तो चांडाल, राजा वगैरेहको ऊंचा नीचा करनेसे क्या गरज "ये बातें निरी भद्दी है और इनसे जाहिर है कि ईश्वर जगत्कर्ता कदापि नही है और जब कर्ता नहीं तब हर्ता भी नहीं हो सकता । जहा तक विचार करके देखते हैं ईश्वरको जगत्कर्ता मानने में अनेक शंकाएं उठती है और सैकडों प्रश्न पैदा होते हैं । उसके सारे गुण नष्ट हो जाते हैं । न वह सर्वज्ञ रहता है न हितोपदेशी । और न सर्वशक्तिमान सर्वव्यापी रहता है। किंतु रागी द्वेषी, संसारी मनुष्य के समान परिमित शक्ति और ज्ञानका धारी ठहरता है । ऐसा मानना एक प्रकार से ईश्वरका अविनय करना है और उसको गालियां सुनाना है । अतएव ईश्वर कभी जगत्कर्ता नही है और उसको जगत्कर्ता' न माननेमें कोई बाधा भी नही । विज्ञानशास्त्र इस बात को स्पष्टतया बतला रहे हैं और तजरवे कर करके दिखला रहे हैं कि संसार में जितनी चीजें बनती हैं वे सव' स्वयमेव एक दूसरेके मिलने बिरने और अपने वीर्यप्रभाव व स्वभावसे वनती रहती हैं। दो चीजोंके मिलनेसे तीसरी चीज बन जाती है और
SR No.010234
Book TitleJain Gazal Gulchaman Bahar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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