________________ जैनधर्मामृत की ही चर्चा किया करता है। इसी कारण वह मुक्तिको प्राप्त कर लेता है। उक्त कथनका स्पष्टीकरण . . . यत्रानाहितधीः पुंसः श्रद्धा तस्मानिवर्तते / -- यस्मानिवर्तते श्रद्धा कुतश्चित्तस्य तल्लयः // 12 // जिस विषयमें पुरुषकी बुद्धि अनासक्त रहती है, उस विषयसे उसकी श्रद्धा निवृत्त हो जाती है और जिस विषयसे श्रद्धा दूर हो जाती है, फिर उसका चित्त उस विषयमें लीन कैसे हो सकता है // 124 // भावार्थ-जब एक वार ज्ञानी पुरुषकी बुद्धि सांसारिक- .. पदार्थोंसे और विषय-भोगोंसे हट जाती है, उनमें श्रद्धा नहीं रहती, तब कर्मोदयसे विवश होकर उन भोगोंको भोगते हुए भी उनमें उसकी आसक्ति नहीं रहती है और अनासक्ति ही मुक्तिका . मूल या आद्य मंत्र है। आत्मा परमात्माकी उपासना करता हुआ कैसे स्वयं परमात्मा बन जाता है आचार्य इस बातको एक उदाहरण-द्वारा स्पष्ट करते हैं भिन्नात्मानमुपास्यात्मा परो भवति तादृशः / .. . वर्त्तिर्दीपं यथोपास्य भिन्ना भवति तादृशी // 125 // . . यह आत्मा अपनेसे भिन्न अर्हन्त, सिद्धरूप परमात्माकी उपासना करके उन्हींके समान परमात्मा हो जाता है। जैसे दीपकसे भिन्न भी बत्ती दीपककी उपासना कर दीपकरूप हो जाती है // 125 //