________________ - चतुर्दश अध्याय 305 पूरण-गलन-स्वभावी शरीरमें आत्माकी कल्पना - प्रविशद्-गलतां व्यूहे देहेऽणूनां समाकृतौ। .. स्थितिभ्रान्त्या प्रपद्यन्ते तमात्मानमबुद्धयः // 16 // आने और जानेवाले परमाणुओंके समुदायरूप देहमें स्थितिकी भ्रान्तिसे अज्ञानी जन उसे ही आत्मा समझने लगते हैं // 99 // अज्ञानी जीव शरीरके गोरे-काले आदि होनेसे अपनेको गोरा काला आदि समझता है पर ज्ञानी ही ज्ञानरूप शरीरको अपना शरीर मानता है। ... .. नये योगाभ्यासियोंको उपदेश : गौरः स्थूलः कृशो वाऽहमित्यङ्गेनाविशेषयन् / / . भात्मानं धारयेन्नित्यं केवलं ज्ञप्तिविग्रहम् // 10 // . मैं गोरा हूँ, मैं काला हूँ, मैं मोटा हूँ, मैं दुबला हूँ, इस . . प्रकार शरीरके साथ अपनेको एकरूप नहीं समझते हुए सदा ही अपनी आत्माको केवल ज्ञानरूपी शरीरवाला समझना चाहिए // 10 // . चित्तकी स्थिरतासे मुक्ति प्राप्ति ... मुक्तिरैकान्तिकी तस्य चित्ते यस्याचला तिः / ___ तस्य नैकान्तिकी मुक्तिर्यस्य नास्त्यचला तिः // 10 // . जिस पुरुषके चित्तमें आत्मस्वरूपकी अचल धारणा है, उसकी नियमसे मुक्ति होती है और जिसके आत्मस्वरूपकी अचल धारणा नहीं है, उसकी नियमसे मुक्ति नहीं होती है.॥१०१॥.. . 20