________________ 304 जैनधर्मामृत लाल होने पर भी ज्ञानी पुरुष अपनी आत्माको लाल रंगका नहीं .. मानता // 95 // ज्ञानी शरीरके नष्ट होनेपर अपना विनाश नहीं मानता नष्टे वस्त्रे यथाऽऽत्मानं न नष्टं मन्यते बुधः / ____नष्टे स्वदेहेऽप्यात्मानं न नष्टं मन्यते बुधः // 66 // जिस प्रकार पहने हुए कपड़ेके नष्ट हो जानेपर ज्ञानी पुरुष अपने शरीरको नष्ट हुआ नहीं मानता है, उसी प्रकार जानी पुरुष अपने देहके नष्ट हो जानेपर भी अपनी आत्माको नष्ट हुआ नहीं मानता // 96 // परम शान्तिको कौन प्राप्त करता है ? यस्य सस्पन्दमाभाति निष्पन्देन समं जगत् / अप्रज्ञमक्रियाभोगं स शमं याति नेतरः // 6 // जिस पुरुषको सस्पन्द अर्थात् हलन-चलनादि क्रिया करता हुआ यह जमत् निप्पन्द या निश्चेष्ट प्रतिभासित होने लगता है, वह ज्ञानी पुरुष ही वीतराग परम-शान्तिको प्राप्त करता है, अन्य अज्ञानी पुरुष नहीं // 97|| __ आत्मज्ञानसे रहित अज्ञानी जीव ही चिरकाल तक संसारमें परिभ्रमण करता है शरीरकन्चुकेनात्मा संवृतज्ञानविग्रहः। नात्मानं वुध्यते तस्माद् भ्रमत्यतिचिरं भवे // 18 बाह्य शरीररूपी कांचलीसे जिसका ज्ञानरूपी अन्तदेह ढंका हुआ . है, ऐसा अज्ञानी जीव आत्माके यथार्थ स्वरूपको नहीं जानता, इसलिए वह संसारमें चिरंकाल तक परिभ्रमण करता है // 98||