________________ चतुर्दश अध्याय 276 . भावार्थ-स्व-पर-भेद-विज्ञानी पुरुष ही मोक्षका अधिकारी है, भेद-विज्ञानके बलसे वह संसारसे शीघ्र मुक्त हो जाता है और अनन्तकाल तक विना किसी अन्तरके मोक्षके सुखका उपभोग करता है। इस श्लोकमें भेद-विज्ञानकी प्राप्तिके तीन कारण बतलाये हैं-गुरूपदेश, अभ्यास और संवित्ति / ये तीनों क्या वस्तु हैं, इस बातका आचार्य स्वयं ही स्पष्टीकरण आगेके श्लोकोंमें कर ... वह गुरु कौन-सा है, जिसके उपदेशसे भेद-विज्ञानकी प्राप्ति होती है, इस शंकाका समाधान करते हुए आचार्य कहते हैं स्वस्मिन् सदाभिलापित्वादभीष्टज्ञापकत्वतः / ... .. . स्वयं हितप्रयोक्तृत्वादात्मैव गुरुरात्मनः // 34 // . - 'स्व'में सदा अभिलाषी होनेसे, अभीष्टका ज्ञापक होनेसे तथा स्वयं ही आत्म-हितका प्रयोक्ता होनेसे आत्मा ही आत्माका गुरु है // 34 // . . ____ भावार्थ-वास्तवमें आत्माका गुरु आत्मा ही है, क्योंकि वही सदा अपने भीतर मोक्ष-सुखके पानेकी अभिलाषा किया करता . है, वही मोक्ष-सुखके उपाय भूत अभीष्ट वस्तुको.. जाननेके लिए / उत्सुक रहता है और वही स्वयंको मोक्ष सुखके हितरूप दुर्गम मार्ग . पर चलनेकी प्रेरणा करता है। यतः गुरुके करनेके योग्य इन तीनों कार्योंको आत्मा ही स्वयं सम्पादन करता है, अतः वह स्वयं ही अपने आपका गुरु है / अन्य आचार्यादिक तो नाम मात्रके गुरु हैं अर्थात् निमित्तमात्र हैं।