________________ अयोद ध्याय अब मोक्ष तत्त्वका वर्णन करते हैं अभावाद् वन्धहेतूनां बन्धनिर्जरया तथा। कृत्स्नकर्मप्रमोक्षो हि मोक्ष इत्यभिधीयते // 1 // . मिथ्यादर्शन आदि कर्म-बन्धके कारणोंका अभाव हो जानेसे तथा संचित कर्मोंकी निर्जरासे जो समस्त कर्मोंका विनाश हो जाता . है, उसे मोक्ष कहते हैं // 1 // पूर्वार्जितं क्षपयतो यथोक्तः क्षयहेतु भिः / संसारवीजं कात्स्न्र्थे न मोहनीयं ग्रहीयते // 2 // ततोऽन्तरायज्ञानध्नदर्शनम्नान्यनन्तरम् / / प्रहीयन्तेऽस्य युगपत् त्रीणि कर्माण्यशेषतः // 3 // - ऊपर निर्जरा प्रकरणमें कहे गये तप, चारित्र और शुक्ल ध्यान आदि कारणोंसे पूर्व-संचित कर्मोंका क्षय करते हुए साधुके संसार का बीजभूत मोहनीय कर्म प्रथम सम्पूर्ण रूपसे नष्ट होता है। पुनः उसी साधुके एक अन्तर्मुहूर्त पश्चात् ही ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय - और अन्तरायसे तीनों कर्म एक साथ नष्ट हो जाते हैं // 2-3 // ततः क्षीणचतुःकर्मा प्राप्तोऽथाख्यातसंयमम् / वीजवन्धननिर्मुक्तः स्नातकः परमेश्वरः ||4|| शेपकर्मफलापेक्षः शुद्धो बुद्धो निरामयः / सर्वज्ञः सर्वदर्शी च जिनो भवति केवली // 5 //