________________ * त्रयोदश अध्याय : संक्षिप्त सार. पूर्व अध्यायमें वर्णित असंख्यातगुणित क्रमसे कर्मनिर्जरा करता हुआ यह जीव सर्वप्रथम ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय. और अन्तराय इन चार घातिया काँका सर्वथा अभाव कर और अनन्त ज्ञान, अनन्तदर्शन, अनन्तसुख एवं अनन्त बलको प्राप्त कर परम आर्हन्त्य पदको प्राप्त करता है, जिसे कि कैवल्य दशा या जीवन्मुक्त अवस्था कहते हैं। इस अवस्थाको प्राप्त करनेके पश्चात् जबतक जीवन शेष रहता है, तब तक वे. संसारके भूले-भटके प्राणियोंके सम्बोधनार्थ सन्मार्गका उपदेश देते हुए धर्म-शास्ताके रूपमें भूमण्डल पर विहार करते रहते हैं। जब उनके जीवनका अन्त आ जाता है. और आयु केवल अन्तर्मुहूर्त मात्र शेष रह जाती है, तब वे अपनी सर्व क्रियाओंका उपसंहार करके विशिष्ट शुक्लध्यानके द्वारा शेष अघातिकर्मों की भी प्रति समय असंख्यातगुणी निर्जरा करते हुए सर्व कर्मोंसे विनिर्मुक्त होकर अक्षय, अव्याबाध, कल्पनातीत, निःसीम, अनुपम आनन्दरूप परम आत्मसिद्धिको प्राप्त करते हैं, उसे ही मोक्ष कहते हैं। .. आत्माके मोक्ष प्राप्त करनेके अनन्तर वह कहाँ जाता है और क्या करता रहता है, आदि बातोंका भी इस अध्यायमें: विवेचन किया गया है।