________________ 256 जैनधर्मामृत और 10 घातियाकर्मोंसे रहित जिनभगवान् , ये दश प्रकारके जीव क्रमसे असंख्यातगुणी कर्म-निर्जरा करते हैं / / 31-33 // भावार्थ-सम्यग्दृष्टि जीवके जितनी कर्म-निर्जरा होती है उससे असंख्यात गुणी कर्म-निर्जरा श्रावकके होती है। श्रावकसे असंख्यात गुणी कर्म-निर्जरा मुनिके होती है, इस प्रकार आगेआगेक क्रम जानना चाहिए। इस असंख्यात गुणी कर्म-निर्जराका कारण आगे-आगेके स्थानों में चित्तकी परम विशुद्धि और संयमका होता है। इसलिए जो जीव आत्मकल्याणके इच्छुक हैं, परम शान्ति चाहते हैं उन्हें चाहिए कि सम्यग्दृष्टि बनकर आगेके स्थानोंको प्राप्त करें। निर्जरा तत्त्वके विशेष ज्ञानके लिए तत्त्वार्थ सूत्रका नवाँ अध्याय और उसकी संस्कृत-हिन्दी टीकाओंको देखना चाहिए / इस प्रकार निर्जरातत्त्वका वर्णन करनेवाला वारहवाँ अध्याय समाप्त हुआ। 50