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________________ द्वादश अध्याय 246 4 व्युत्सर्ग, 5 विनय और. 6 ध्यान ये छह प्रकारका आभ्यन्तर तप है // 14 // 1 स्वाध्याय तप . : वाचना पृच्छनाम्नायस्तथा धर्मस्य देशना / . अनुप्रेक्षा च निर्दिष्टः स्वाध्यायः पञ्चधा जिनैः // 15 // .. वाचना, पृच्छना, आम्नाय, धर्मोपदेश और अनुप्रेक्षा ये . स्वाध्याय तपके पाँच भेद जिन भगवान्ने कहे हैं // 15 // विशेषार्थ-शास्त्रके अध्ययनको स्वाध्यायतप कहते हैं / उसके पाँच भेद हैं। किसी शास्त्रका, उसके मूल श्लोकादिका, उसके अर्थका-अथवा मूल और अर्थ दोनोंका स्वयं पढ़ना, या किसी जिज्ञासु पात्रको प्रतिपादन करना वाचना स्वाध्याय है। शास्त्रसम्बन्धी संशयको दूर करनेके लिए, तत्त्वार्थके निश्चयके लिए एवं अन्य शंका-समाधानके लिए दूसरेसे पूछना पृच्छना नामका स्वाध्याय है। शास्त्रीय वचनोंका, श्लोक आदिका निर्दोष उच्चारण करना, उनका पाठ करना—फेरना आम्नाय नामका स्वाध्याय है। धार्मिक कथाओंका व्याख्यान करना धर्मोपदेश नामक स्वाध्याय है। गुरु से पढ़े हुए तत्त्वका मनसे चिन्तवन अभ्यास आदि करना अनुप्रेक्षा नामका स्वाध्याय है। इस प्रकार पाँचों भेदरूप स्वाध्यायको करने से कर्मोंकी निर्जरा होती है। . 2 प्रायश्चित्त तप 'आलोचनं प्रतिक्रान्तिस्तथा तटुभयं तपः / . व्युत्सर्गश्च विवेकश्व तथोपस्थापना मता // 16 //
SR No.010233
Book TitleJain Dharmamruta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1965
Total Pages177
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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