________________ 248 जैनधर्मामृत पान-सम्बन्धी जो संकल्प किया जाता है, वह वृत्तिपरिसंख्यानतप कहलाता है // 11 // भावार्थ-गोचरी जानेके पूर्व यह नियम करना कि आज . अमुक वस्तु मिलेगी, तो आहार करूँगा, अन्यथा नहीं, इतने घर तक गोचरीको जाऊँगा, इत्यादि प्रकार बने भिक्षावृत्ति सम्बन्धी नियम करनेको वृत्तिपरिसंख्यान तप कहते हैं। 5 कायक्लेश तप अनेकप्रतिमास्थानं मौनं शीतसहिष्णुता। आतपस्थानमित्यादिकायक्लेशो मतं तपः // 12 // अनेक प्रकारके प्रतिमायोग धारण कर स्थित रहना, मौन धारण करना, शीत-बाधा सहना, आतप (उप्ण) वाधा सहना अर्थात् आतापनयोग धारण करना, इत्यादि कायक्लेश तप है // 12 // विविक्तशय्यासन तप जन्तुपीडाविमुक्तायां वसतौ शयनासनम् / सेवमानस्य विज्ञेयं विविक्तशयनासनम् / / 13 / / प्राणियोंकी पीडासे विमुक्त एकान्त वसतिकामें शयन, आसन को सेवन करने वाले साधुके विविक्तशय्यासन नामका तप जानना चाहिए // 13 // अब छह प्रकारके आभ्यन्तर तपको कहते हैं स्वाध्यायः शोधनं चैव वैयावृत्त्यं तथैव च / . व्युत्सर्गो विनयश्चैव ध्यानमाभ्यन्तरं तपः // 14 // 1 स्वाध्याय, 2 शोधन अर्थात् प्रायश्चित्त, 3 वैश्यावृत्त्य,