________________ द्वादश अध्याय 1 अवमोदर्य तप सर्व तदवमोदर्यमाहारं यत्र हापयेत् / . एक-द्वि-व्यादिभिर्मासैरामासं समयान्मुनिः // l . अपने आहारमें से एक, दो, तीन आदि ग्रासोंसे लेकर अन्तिम (बत्तीसवें ) ग्रास तक मुनिजन जो आहारको आगमानुसार छोड़ते हैं, वह सब अवमोदर्य तप कहलाता है // 8 // 2 उपवास तप मोक्षार्थ त्यज्यते यस्मिन्नाहारोऽपि चतुर्विधः / उपवासः स तद्भेदा सन्ति पष्टाष्टमादयः॥६॥ ... मोक्षके लिए जो खाद्य, स्वाद्य, लेह्य और पेय इन चारों प्रकारोंके आहारका त्याग किया जाता है, वह उपवास कहलाता है। उसके षष्ठभक्त (वेला ) अष्टमभक्त ( तेला) आदि अनेक भेद होते हैं // 9 // ३रसपरित्याग रसत्यागो भवेत्तलक्षीरेक्षुदधिसर्पिपाम् / . एक-द्वि-त्रीणि चत्वारि त्यजतस्तानि पञ्चधा // 10 // - तैल, दूध, इक्षु, दधि और घी, इनका त्याग करना सो रसपरित्याग है, अथवा उक्त रसोंमेंसे एक, दो, तीन चार रसोंको छोड़ते हुए यह तप पाँच प्रकारका हो जाता है // 10 // 4 वृत्तिपरिसंख्यान तप एकवस्तुदशाङ्गारपानमुद्दादिगोचरः। .. सङ्कल्पः क्रियते यन्त्र वृत्तिसङ्ख्या हि तत्तपः // 11 // . एक वस्तु, एक घरसे लेकर दश घर, पान-मूंग आदि आहार