________________ - एकादश अध्याय 241 .. २छेदोपस्थापना चारित्र यत्र हिंसादिभेदेन त्यागः सावद्यकर्मणः। . व्रतलोपे विशुद्धिर्वा छेदोपस्थापनं हि तत् // 38 // जब हिंसादिके भेदसे सावध कर्मका त्याग जिया जाता है अथवा व्रतके लोप हो जाने पर पुनः उसे धारण कर जो शुद्धि की जाती है, वह छेदोपस्थापनाचारित्र है // 38 // ___भावार्थ-छेदोपस्थापनाके आचार्योंने दो अर्थ किये हैं / छेद नाम भेदका है। जब साधुके यह विकल्प रहता है कि 'मैं इस अहिंसा व्रतको धारण कर रहा हूँ, अथवा सत्य व्रतको धारण कर रहा हूँ तब वह भेद पूर्वक चारित्रका धारण करना कहलाता है और इस लिए इस प्रकारके चारित्रका छेदोपस्थापना नाम हो जाता है। दूसरे अर्थके अनुसार किसी प्रमादादिके निमित्तसे यदि व्रतका छेद (भंग) हो जावे, तो प्रायश्चित्त लेकर पुनः उसके धारण करनेको छेदोपस्थापना चारित्र कहते हैं। सूत्रकारने उक्त दोनों अर्थोंको एक साथ एक ही श्लोकमें कहा है। ___3 परिहारविशुद्धि चारित्र . . विशिष्टपरिहारेण प्राणिघातस्य यत्र हि / शुद्धिर्भवति चारित्रं परिहारविशुद्धि तत् // 36 // शरीर-साधनाके द्वारा विशिष्ट प्रकारसे प्राणिघातका परिहार करते हुए जो विशुद्धि उत्पन्न होती है उसे परिहार विशुद्धि चारित्र कहते हैं // 39 // . भावार्थ-यह चारित्र हर एक साधुके नहीं होता किन्तु जो तीस वर्षकी अवस्था तक सुख-शान्तिसे भरपूर गृहस्थीमें आनन्दसे