________________ एकादश अध्याय 237 यह कर्मरूपी काछी (खेती करने वाला किसान) चतुर्गतिरूपी घटीयंत्रमें ( राहटमें) घड़ीके समान इस प्राणीको जोड़कर उसे निरन्तर परिभ्रमण कराता रहता है, ऐसा विचार करना संसारानुप्रेक्षा है // 25 // 4 एकत्व-भावना कस्यापत्यं पिता कस्य कस्याम्बा कस्य गेहिनी / एक एव भवाम्भोधौ जीवो भ्रमति दुस्तरे // 26 // इस संसारमें कौन किसका पुत्र है और कौन किसका पिता है, कौन किसकी माता है और कौन किसकी स्त्री है ? यह जीव इस दुस्तर संसार-समुद्र में अकेला ही भ्रमण करता रहता है, ऐसा ..चिन्तवन करना एकत्वभावना है // 26 // 5 अन्यत्व-भावना अन्यः सचेतनो जीवो वपुरन्यदचेतनम् / हा तथापि न मन्यन्ते नानात्वमनयोजनाः // 27 // यह सचेतन जीव भिन्न है, और यह अचेतन शरीर भिन्न है, ऐसा स्पष्ट अनुभव होते हुए हाय, बड़े कष्टकी बात है कि मनुष्य शरीर और आत्माकी भिन्नताको नहीं समझते हैं, चिन्तवन / करना अन्यत्व भावना है // 27 // 6 अशुचि-भावना 'नानाकृमिशताकीर्णे दुर्गन्धे मलपूरिते।। ... आत्मनश्च परेपां च क शुचित्वं शरीरके // 28 // - नाना जातिके सहस्रों कीड़ोंसे व्याप्त, दुर्गन्धित और मल-मूत्र से पूरित अपने या पराये शरीरमें कहाँ पवित्रता है, ऐसा चिन्तवन करते हुए शरीरसे विरक्त रहना अशुचि भावना है // 28 // . .