________________ 236 जैनधर्मामृत 1 अनित्य भावना, 2 अशरण भावना, 3 संसार भावना 4 एकत्वभावना, 5 अत्यत्व भावना, 6 अशुचि भावना, 7 आस्रव भावना, 8 संवर भावना, 9 निर्जरा भावना, 10 लोक भावना, 11 बोधि-दुर्लभ भावना और 12 धर्म-भावना, ये बारह अनुप्रेक्षा कहलाती हैं, इनका सदा चिन्तवन करना चाहिए // 21-22 // भावार्थ-संसार और शरीर आदिके स्वरूपका चिन्तवन करने को अनुप्रेक्षा या भावना कहते हैं / 1 अनित्य-भावना क्रोडीकरोति प्रथमं जातजन्तुमनित्यता / धात्री च जननी पश्चाद्धिग्मानुष्यमसारकम् // 23 // इस संसारमें उत्पन्न हुए प्राणीको अनित्यता सबसे पहले अपनी गोदीमें लेती है, धाय और माता पीछे। ऐसे इस असार मनुष्य भवको धिक्कार है / ऐसा विचार करते हुए सांसारिक पदार्थासे ममता त्यागना अनित्यानुप्रेक्षा है // 23 // . 2 अशरण-भावना उपघ्रातस्य घोरेण मृत्युव्यात्रेण देहिनः / देवा अपि न जायन्ते शरणं किमु मानवाः // 24 // मृत्युरूपी भयानक व्याघ्रसे आक्रान्त प्राणीको बचानेके लिए देवता भी शरण नहीं हैं, तो फिर बेचारे दीन मानवोंकी तो कथा ही क्या है, ऐसा विचार करना अशरण-भावना है // 24 // 3 संसार-भावना चतुर्गतिघीयन्त्रे सन्निवेश्य घटीमिव / आत्मानं भ्रमयत्येव हा कष्टं कर्मकक्षिकः // 25 // .