________________ एकादश अध्याय 233 7 तपोधर्म . परं कर्मक्षयाथं यत्तप्यते तत्तपः स्मृतम् / . कोंके क्षय करनेके लिए विना किसी सांसारिक प्रलोभनके जो तपश्चर्या की जाती है, वह उत्तम तपोधर्म माना गया है। 8 त्यागधर्म त्यागस्तु धर्मशास्त्रादिविश्राणनमुदाहृतम् // 12 // धर्मका उपदेश देना, शास्त्रका वितरण करना और बुरी प्रवृत्तियोंका त्याग कराना सो त्यागधर्म माना गया है // 12 // आकिञ्चन्यधर्म ममेदमित्युपात्तेपु शरीरादिपु केपुचित् / अभिसन्धिनिवृत्ति तदाकिञ्चन्यमुच्यते // 13 // धारण किये हुए शरीर, पीछी, कमण्डलु, शास्त्र आदिमें 'यह मेरा है' इस प्रकारके अभिप्रायकी सर्वथा निवृत्तिको आकिंचन्य धर्म कहा गया है // 13 // . 10 ब्रह्मचर्यधर्म स्त्रीसंसक्तशय्यादेरनुभूताङ्गनास्मृतेः / तत्कथायाः श्रुतेश्च स्याद् ब्रह्मचर्य हि वर्जनात् // 14 // स्त्रियोंसे संसक्त शय्यादिका त्याग करना, पहले भोगी हुई स्त्रियोंके स्मरणका त्याग करना और स्त्रियोंकी राग-वर्धक कथाओंके सुननेका त्याग करना सो ब्रह्मचर्यधर्म है // 14 // .. ' इति प्रवर्तमानस्य धर्मे भवति संवरः। .. तद्विपक्षनिमित्तस्य कर्मणोऽनात्रवे सति // 15 // 5. इस. प्रकार जो दश प्रकारके धर्ममें प्रवृत्ति करता है, उसके