________________ एकादश अध्याय 231 दश धर्म .... क्षमा मृवृजुते शौचं ससत्यं संयमस्तपः / त्यागोऽकिञ्चनता ब्रह्मधर्मो दशविधः स्मृतः // 6 // उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव, उत्तम आर्जव, उत्तम शौच, उत्तम सत्य, उतम संयम, उत्तम तप, उत्तम त्याग, उत्तम आकिञ्चन्य और. . उत्तम ब्रह्मचर्य, यह दश प्रकारका धर्म माना गया है // 6 // 1 उत्तम क्षमा क्रोधोत्पत्तिनिमित्तानामत्यन्तं सति सम्भवे / आक्रोश-ताडनादीनां कालुप्यो परमः क्षमा // 7 // क्रोधकी उत्पत्तिके कारणभूत आक्रोश, ताड़न, मारण आदिके अत्यन्त सम्भव होनेपर भी, अर्थात् अपने ऊपर उक्त आपत्तियोंके आजानेपर भी चित्तमें कलुषता या विकार भावको उत्पन्न नहीं होने देना उत्तम क्षमा है // 7 // . 2 मार्दवधर्मका वर्णन अभावो योऽभिमानस्य परैः परिभवे कृते / जात्यादीनामनावेशान्मदानां मार्दवं हि तत् / / 8 / / दूसरेके द्वारा अपनो अपमान भी किये जाने पर अभिमान नहीं करना और जाति, कुल आदि मदोंको मनमें भी नहीं लाना सो मार्दव धर्म है // 8 ... . . .. 3 आर्जवधर्म वाङ्मनःकाययोगानामवक्रत्वं तदार्जवम् / - मन, वचन और काय इन तीनों योगोंकी कुटिलता रहित सरल परिणति रखना आर्जव धर्म है।