________________ 226 जैनधर्मामृत ___ वेदनीय कर्मकी जघन्य स्थिति बारह मुहूर्त, नाम और गोत्र की आठ मुहूर्त और शेष पाँच कर्मोंकी जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त प्रमाण जानना चाहिए // 16 // इस प्रकार स्थितिबन्धका वर्णन समाप्त हुआ। अब अनुभागवन्धका वर्णन करते हैं- . विपाकः प्रागुपात्तानां यः शुभाशुभकर्मणाम् / असावनुभवो शेयो यथानाम भवेञ्च सः // 17 // पूर्व-संचित शुभ और अशुभ कर्मोंका जो विपाक अर्थात् फल मिलता है, उसे अनुभागबन्ध जानना चाहिए। वह अनुभागवन्ध यथानाम होता है अर्थात् जिस प्रकृतिका जैसा नाम है, उसके अनुसार ही वह अपने फलको देती है // 17 // . ___ भावार्थ-जैसे क्रोध कषायका उदय - क्रोधरूप फलको देगा, हास्यकर्मका उदय हँसी उत्पन्न करेगा और साताकर्मका उदय सुखके साधन मिलायगा। इस अनुभागवन्धके सर्वघाति और देश घाति ऐसे दो भेद हैं, उनका विस्तृत वर्णन गो० कर्मकाण्डसे जानना चाहिए। इस प्रकार अनुभागबन्धका वर्णन समाप्त हुआ। अब प्रदेशबन्धका वर्णन करते हैं। सर्वकर्मप्रकृत्यर्हान् सर्वेष्वपि भवेषु यत् / द्विविधान् पुद्गलस्कन्धान सूक्ष्मान् योगविशेषतः // 18 // .. सर्वेष्वात्मप्रदेशेवनन्तानन्तप्रदेशकान् / आत्मसात्कुरुते जीवः स प्रदेशोऽभिधीयते // 16 // सर्व कर्म प्रकृतियोंके योग्य, सर्व ही भवोंमें फ़लके देने वाले, दो प्रकारके सूक्ष्म पुद्गल. स्कन्धोंको योगकी विशेषतासे ग्रहण कर मदराकान् / .: .