________________ दशम अध्याय देवें, और आत्माके स्वरूपको क, दुःख देवें, उन्हें कषाय कहते हैं : वे कपाय मूलमें चार प्रकारकी हैं-क्रोध, मान, माया और लोभ // 6 // कपार्योंके उत्तरभेद पोडशैव कपायाः स्युर्नोकपाया नवेरिताः / .... ईप दो न भेदोऽन्न कपायाः पञ्चविंशतिः // 7 // .. अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया, लोभ, अप्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभ, प्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया लोभ और संज्वलन क्रोध, मान, माया, लोभ ये सोलह कषाय हैं। हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीनेद, पुरुषवेद और नपुंसकवेद ये नौ नोकपाय हैं, इस प्रकार पच्चीस कषाय होती हैं। यहाँपर . ईषत् या अल्प कषायको नोकपाय जानना चाहिए ||7|| विशेपार्थ-जो कषाय सम्यग्दर्शनका घात करे, उसे अनन्तानुबन्धी कहते हैं। जो कषाय श्रावकके व्रतोंका घात करे उसे अप्रत्याख्यानावरणीय कहते हैं। जो कषाय मुनिव्रतका घात करे; उसे प्रत्याख्यानावरणीय कहते हैं और जो यथाख्यात चारित्रका घात करे, उसे संज्वलन कषाय कहते हैं। कायवाङ्मनसां कर्म योगः शास्त्रे प्ररूपितः / ... . .आम्रवन्ति च कर्माणि यस्यालम्बनपूर्वकम् // 8 // . चत्वारो हि मनोयोगाः वाग्योगानां चतुष्टयम् / पञ्च द्वौ च वपुर्योगाः योगाः पञ्चदशोदिताः // 6 // शास्त्रों में मन-वचन-कायकी क्रियाको योग कहते हैं, इस योगके आश्रयसे ही कर्म आते हैं। चार मनोयोग, चार वचनयोग