________________ म ध्याय कर्मवन्धके कारण बन्धस्य हेतवः पञ्च स्युमिथ्यात्वमसंयमः / प्रमादश्च कपायश्च योगश्चेति जिनोदिताः // 1 // जिन भगवान्ने मिथ्यादर्शन, असंयम, प्रमाद, कषाय और योग ये पाँच बन्धके कारण कहे हैं // 1 // ऐकान्तिकं सांशयिक विपरीतं तथैव च / आज्ञानिकञ्च मिथ्यात्वं तथा वैनयिकं भवेत् // 2 // अतत्त्वोंके श्रद्धानको मिथ्यात्व या मिथ्यादर्शन कहते हैं। उसके पाँच भेद हैं-एकान्तमिथ्यात्व, विपरीतमिथ्यात्व, विनयमिथ्यात्व, संशयमिथ्यात्व और अज्ञानमिथ्यात्व // 2 // ___ भावार्थ-वस्तुके अनेक धर्मात्मक होने पर भी उसे एक धर्म रूप मानना, द्रव्यसे गुणको सर्वथा भिन्न मानना, यह एकान्त मिथ्यात्व है / सग्रन्थ साधुको भी निर्ग्रन्थ मानना, हिंसामय अधर्मको भी धर्म समझना और अदेवको भी सुदेव मानना विपरीत मिथ्यात्व है। सभी देव-कुदेवकी, सुगुरु-कुगुरुकी और धर्म-अधर्मकी बराबर समान विनय करना सो विनयमिथ्यात्व है। अहिंसामय जैनधर्म सच्चा है कि नहीं-इस प्रकार वुद्धिकी द्विविधाको संशयमिथ्यात्व कहते हैं। . हिताहित विवेकका अभाव होना अथवा पशुबन्धको धर्म मानना .. अज्ञानमिथ्यात्व है।