________________ नवम अध्याय जीवके.आनेवाला कर्म बंध जाता है। किन्तु : सूखी दीवाल पर जैसे उड़कर आई हुई धूलि लग कर झड़ जाती है, उसी प्रकार कषाय-रहित जीवके योगकी चंचलतासे जो कर्म आते हैं, वे भी आत्मासे टकराकर झड़ जाते हैं, बन्धको प्राप्त नहीं होते। ... ..: चतुःकपायपञ्चाक्षस्तथा पञ्चभिरवतैः / . . . . . .: ... ... ... . क्रियाभिः पञ्चविंशत्या सास्परायिकमात्रवेत् // 3 // .. क्रोध, मान, माया, लोभ, इन चार , कषायोंसे, स्पर्शन आदि पाँच इन्द्रियोंसे, हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह इन पाँच पापोंसे और पच्चीस क्रियाओंसे साम्परायिक आस्रव होता है // 3 // पच्चीस क्रियाओंका वर्णन सर्वार्थसिद्धिसे जानना चाहिए। आस्त्रवकी हीनाधि के कारण ... तीव-मन्द-परिज्ञात-भावेभ्यों ज्ञातभावतः'। ' / वीर्याधिकरणाभ्यां च तद्विशेष विदुर्जिनाः // 4 // " तीव्रभाव, मन्दभाव, ज्ञातभाव, अज्ञातभाव, वीर्य और अधिकरणकी विशेषतासे साम्परायिक आस्रवमें विशेषता होती है ऐसा जिन भगवानने कहा है // 4 // .. :: ..भावार्थ-एक सरीखे कर्मको करते हुए भी विभिन्न लोगों में उनके तीन मन्द आदि भावोंके अनुसार कर्मास्रवमें विभिन्नता होती है, यह इस श्लोकका अभिप्राय. समझना चाहिए / अधिकरणके दो भेद बताये गये हैं.–१ जीवाधिकरण, 2 अजीवाधिकरण / जीवाधिकरणके 108 भेद और..अजीवाधिकरणके . संयोग, निसर्ग आदि. 11 भेद बतलाये गये हैं। उनका विस्तृत विवेचन. तत्त्वार्थ