________________ नवम ध्याय : आस्तव तत्त्वका स्वरूप .. . कायवाङ्मनसां कर्म स्मृतो योगः स आनवः..। . . ... शुभः पुण्यस्य विज्ञेयो विपरीतश्च पाप्मनः // 11 // .. .. काय, वचन और मनकी जो क्रिया हलन-चलन रूप होती है, उसे. योग कहते हैं / वही योग. आस्रव. माना गया है। वह योग यदि शुभ हो तो पुण्यका आस्रव होता है और यदि. विपरीत हो अर्थात् अशुभ हो, तो पापका आस्रव होता है / / 1 / / ... .. . - आस्ववके दो भेद " ... ... ... . - जन्तवः सकपाया ये कम ते साम्परायिकम् / / . .. :: .. . अर्जयन्त्युपशान्ताद्या ईर्यापथमथापरे // 2 // .. .. . - प्रथम गुणस्थानसे लेकर दशावें गुणस्थान तकके जो जीव हैं, वे सकषाय कहलाते हैं, क्योंकि, आगेके 'गुणस्थानों में कपायका अभाव है। जो कषाय-सहित जीव हैं, वे साम्परायिक आस्रवको उपार्जन करते हैं, और जो उपशान्तकषाय आदि ग्यारहवें, बारहवें और तेरहवें गुणस्थानवी जीव हैं, वे ईर्यापथ आस्रवको उपार्जन करते हैं // 2 // भावार्थ- कषाय-सहित कर्मानवको साम्परायिक आस्रव और कषाय-रहित आत्रको ईयापथ आस्रव कहते हैं। जैसे गीली दीवाल पर उड़ती हुई धूलि चिपक जाती है, उसी प्रकार सकषांय