________________ 16 जैनधर्मामृत / चतुरिन्द्रिय जीव मधुपः कीटको दंश-मशकौ मक्षिकास्तथा / वरटो शलभाद्याश्च भवन्ति चतुरिन्द्रियाः / / 13 / / भौंरा, क्रीड़ा, डांस, मच्छर, मक्खी, मधुमक्खी, वरटी, पतंगा आदि चतुरिन्द्रिय जीव हैं, क्योंकि इनके स्पर्शन, रसना, प्राण और चक्षु ये चार इन्द्रियाँ पाई जाती हैं / / 13 / / पञ्चेन्द्रिय जीव पन्चेन्द्रियाश्च माः स्यु रकास्त्रिदिवौकसः / तियञ्चोऽप्युरगाभोगिपरिसर्पचतुष्पदाः / / 14 // मनुष्य, नारकी, देव और साँप, भुजंग, परिसर्प, चतुप्पद (चौपाये ), पक्षी आदि तिर्यच ये सब पंचेन्द्रिय जीव हैं, क्योंकि, इनके स्पर्शन, रसना, प्राण, चक्षु और कर्ण ये पाँचों इन्द्रियाँ होती हैं // 14 // इन्द्रियका स्वरूप और भेद इन्द्रियं लिङ्गमिन्द्रस्य तञ्च पञ्चविधं भवेत् / स्पर्शनं रसनं घ्राणं चक्षुः श्रोत्रमतः परम् // 15 // आत्माके ज्ञान करानेवाले चिह्नको इन्द्रिय कहते हैं। वे पाँच प्रकारकी होती हैं-स्पर्शनेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय, ब्रागेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय और श्रोत्रेन्द्रिय // 15 // मुक्त जीवोंका स्वरूप __इन्द्रियार्थसुखातीता लोकालोकावलोकिनः / . क्षायिकातीन्द्रियज्ञाना मुक्ताः सन्ति निरिन्द्रियाः // 16 // जो उक्त पाँचों इन्द्रियोंसे तथा उनके विषय-जनित सुखसे