________________ सप्तम भन्याय 20 . ... .." : अस जीवः / वसा द्वि-त्रि-चतुःपञ्चहपीका भवभागिनः / ... : विकला,संज्ञिसंड्याख्यास्त्रसप्रकृतियन्त्रिताः // 10 // ... त्रस नामकर्मके उदयवाले ऐसे द्विन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय जीवोंको त्रस जानना चाहिए। उनमें द्विन्द्रिय, __त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवोंको विकलत्रय कहते हैं, क्योंकि . इनके इन्द्रियोंकी विकलता ( न्यूनता ) पाई जाती है। पंचेन्द्रिय जीव संज्ञी और असंज्ञीके भेदसे. दो प्रकारके हैं। जिनके मन होता है, उन्हें संज्ञी कहते हैं और मन-रहित जीवोंको असंज्ञी कहते हैं / ... असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीव केवल तिर्यञ्चगतिमें ही पाये जाते हैं / शेष तीनों गतियोंके सर्व जीव संज्ञी ही होते हैं // 10 // ......) द्वीन्द्रिय जीव . . ... ... .. शम्बूकः शङ्खशुक्तिर्वा गण्डूपदकपदकाः। ....... कुक्षिकृम्यादयश्चैते द्वीन्द्रियाः, प्राणिनो मताः // 11 // शम्बूक, शंख, सीप, गण्डूपद, कौड़ी, कुक्षिकृमि और लट, केंचुआ आदि ये सब द्वीन्द्रिय जीव माने गये हैं, क्योंकि, इन सबके स्पर्शन और रसना ये दो इन्द्रियाँ होती हैं // 11 // .. .:..:...त्रीन्द्रिय जीव... . . . . . . : .. कुन्थुः पिपीलिका कुम्भी वृश्चिकश्चन्द्रगोपकाः / .... . घुण-मत्कुण-यूकाद्यास्त्रीन्द्रियाः सन्ति जन्तवः // 12 // कुंथु, पिपीलिका-चींटी-चींटा, कुम्भी, विच्छू, इन्द्रगोप, घुणका कीड़ा, खटमल और जूं आदिक त्रीन्द्रिय जीव हैं, क्योंकि इनके स्पर्शन, रसना.और घ्राण ये तीन इन्द्रियाँ होती हैं. // 12 //