________________ 162 जैनधर्मामृत शमसे होनेवाले भावोंको क्षायोपशमिक, काँके उदय-जनित भावों को मोदयिक और कमोंके उदय, उपशम आदि अन्य निमित्तकी अपेक्षासे रहित स्वभावसे स्वतः होनेवाले परिणामोंको पारिणामिक भाव कहते हैं। इन पाँच प्रकारके भावोंकी अपेक्षा जीवके भी . पाँच भेद हो जाते हैं। जीवके दो भेद संसारिणश्च मुक्ताश्च जीवास्तु द्विविधाः स्मृताः। लक्षणं तत्र मुक्तानामुत्तरत्र प्रचचयते // 7 // संसारी और मुक्त इस प्रकार जीवके दो भेद जानना चाहिए। इनमेंसे मुक्त जीवोंका लक्षण आगे कहेंगे // 7 // साम्प्रतं तु प्ररूप्यन्ते जीवाः संसारवर्तिनः / त्रस-स्थावरभेदेन द्विविधास्तेऽपि सम्मताः // 8 // अब पहले संसारमें परिभ्रमण करनेवाले संसारी जीवोंका वर्णन किया जाता है / संसारी जीव भी त्रस और स्थावर जीवोंके भेदसे दो प्रकारके माने गये हैं ||8|| स्थावर जीव स्थावराः स्युः पृथिव्यापस्तेजोवायुर्वनस्पतिः। स्वैः स्वभेदैः समा ोते सर्व एकेन्द्रियाः स्मृताः // 6 // पृथिवी, जल, तेज, वायु और वनस्पति ये पाँच प्रकारके . स्थावर जीव होते हैं। ये सब अपनी-अपनी जातिके अनेकों भेदोंके साथ एकेन्द्रिय माने गये हैं, क्योंकि, इन सबके एक ही स्पर्शनेन्द्रिय होती है // 9 //