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________________ पष्ठ अध्याय . 187 आठ कर्मोंको नाश करके सम्यक्त्व आदि आठ गुणोंको प्राप्त कर और सर्व आपदाओंसे विमुक्त होकर लोकके अग्रभागमें निवास . करने वाले सिद्ध भगवान् होते हैं // 21 // विशेषार्थ-सिद्धोंके आठ गुण ये हैं अनन्तज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्तसुख और अनन्तवीर्य ये चार तो घातिया कर्मोंके क्षय से होते हैं, तथा अघातिया कोंके क्षयसे क्रमशः अव्यावाध, अवगाहना, सूक्ष्मत्व और अगुरुलघुत्व ये चार गुण प्रकट होते हैं, यह सिद्ध अवस्था आत्मविकासकी चरम सीमा है। . चौदह गुणस्थानोंका विशेष स्वरूप जाननेके लिए प्राकृत और संस्कृत पंचसंग्रह, गो० जीवकांड और उसकी संस्कृत टीकाएं देखना चाहिए। इस प्रकार छठा अध्याय समाप्त हुआ।
SR No.010233
Book TitleJain Dharmamruta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1965
Total Pages177
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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